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Gunnar Hobbs
I am pretty sure some things are impossible.

Capt. Hook
Uwo tree

Parth
Yes, this is the shortest quote on site.

Parth
Is this the shortest quote on this site...?

Raul Nieto
I usually think about all the ways that my life could be better than it …

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प्रेमचंद - कर्मभूमि
समरकान्त के घाव पर जैसे नमक पड़ गया। बोले-यह आज नई बात मालूम हुई। तब तो तुम्हारे ऋषि होने में कोई संदेह नहीं रहा, मगर साधन के साथ कुछ घर-गृहस्थी का काम भी देखना होता है। दिन-भर स्कूल में रहो, वहां से लौटो तो चरखे पर बैठो, रात को तुम्हारी स्त्री-पाठशाला खुले, संध्‍या समय जलसे हों, तो घर का धंधा कौन करे- मैं बैल नहीं हूं। तुम्हीं लोगों के लिए इस जंजाल में फंसा हुआ हूं।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
मकान था तो बहुत बड़ा मगर निवासियों की रक्षा के लिए उतना उपयुक्त न था, जितना धान की रक्षा के लिए। नीचे के तल्ले में कई बड़े-बड़े कमरे थे, जो गोदाम के लिए बहुत अनुकूल थे। हवा और प्रकाश का कहीं रास्ता नहीं। जिस रास्ते से हवा और प्रकाश आ सकता है, उसी रास्ते से चोर भी तो आ सकता है। चोर की शंका उसकी एक-एक ईंट से टपकती थी। ऊपर के दोनों तल्ले हवादार और खुले हुए थे।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
विवाह हुए दो साल हो चुके थे पर दोनों में कोई सामंजस्य न था। दोनों अपने-अपने मार्ग पर चले जाते थे। दोनों के विचार अलग, व्यवहार अलग, संसार अलग। जैसे दो भिन्न जलवायु के जंतु एक पिंजरे में बंद कर दिए गए हों। हां, तभी अमरकान्त के जीवन में संयम और प्रयास की लगन पैदा हो गई थी। उसकी प्रकृति में जो ढीलापन, निर्जीवता और संकोच था वह कोमलता के रूप में बदलता जाता था। विद्याभ्यास में उसे अब रुचि हो गई थी।.

ककककककक - कककककक
अमरकान्त की अवस्था उन्नीस साल से कम न थी पर देह और बुध्दि को देखते हुए, अभी किशोरावस्था ही में था। देह का दुर्बल, बुध्दि का मंद। पौधे को कभी मुक्त प्रकाश न मिला, कैसे बढ़ता, कैसे फैलता- बढ़ने और फैलने के दिन कुसंगति और असंयम में निकल गए। दस साल पढ़ते हो गए थे और अभी ज्यों-त्यों आठवें में पहुंचा था। किंतु विवाह के लिए यह बातें नहीं देखी जातीं। देखा जाता है धान, विशेषकर उस बिरादरी में, जिसका उ?म ही व्यवसाय हो।.

रररररररररर - गगगगगगग
नैना की सूरत भाई से इतनी मिलती-जुलती थी, जैसे सगी बहन हो। इस अनुरूपता ने उसे अमरकान्त के और भी समीप कर दिया था। माता-पिता के इस दुर्वव्‍यहवार को वह इस स्नेह के नशे में भुला दिया करता था। घर में कोई बालक न था और नैना के लिए किसी साथी का होना अनिवार्य था। माता चाहती थीं, नैना भाई से दूर-दूर रहे। वह अमरकान्त को इस योग्य न समझती थीं कि वह उनकी बेटी के साथ खेले।.

बबबबबबब - बबबबबबब
खैरियत यह हुई कि उसके कोई सौतेला भाई न हुआ। नहीं शायद वह घर से निकल गया होता। समरकान्त अपनी संपत्ति को पुत्र से ज्यादा मूल्यवान समझते थे। पुत्र के लिए तो संपत्ति की कोई जरूरत न थी पर संपत्ति के लिए पुत्र की जरूरत थी। विमाता की तो इच्छा यही थी कि उसे वनवास देकर अपनी चहेती नैना के लिए रास्ता साफ कर दे पर समरकान्त इस विषय में निश्चल रहे। मजा यह था कि नैना स्वयं भाई से प्रेम करती थी, और अमरकान्त के हृदय में अगर घर वालों के लिए कहीं कोमल स्थान था, तो वह नैना के लिए था।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
मगर कभी-कभी बुराई से भलाई पैदा हो जाती है। पुत्र सामान्य रीति से पिता का अनुगामी होता है। महाजन का बेटा महाजन, पंडित का पंडित, वकील का वकील, किसान का किसान होता है मगर यहां इस द्वेष ने महाजन के पुत्र को महाजन का शत्रु बना दिया। जिस बात का पिता ने विरोध किया, वह पुत्र के लिए मान्य हो गई, और जिसको सराहा, वह त्याज्य। महाजनी के हथकंडे और षडयंत्र उसके सामने रोज ही रचे जाते थे। उसे इस व्यापार से घृणा होती थी।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
अमरकान्त के पिता लाला समरकान्त बड़े उद्योगी पुरुष थे। उनके पिता केवल एक झोंपडी छोड़कर मरे थे मगर समरकान्त ने अपने बाहुबल से लाखों की संपत्ति जमा कर ली थी। पहले उनकी एक छोटी-सी हल्दी की आढ़त थी। हल्दी से गुड़ और चावल की बारी आई। तीन बरस तक लगातार उनके व्यापार का क्षेत्र बढ़ता ही गया। अब आढ़तें बंद कर दी थीं। केवल लेन-देन करते थे। जिसे कोई महाजन रुपये न दे, उसे वह बेखटके दे देते और वसूल भी कर लेते उन्हें आश्चर्य होता था कि किसी के रुपये मारे कैसे जाते हैं- ऐसा मेहनती आदमी भी कम होगा।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
अमरकान्त की आंखें फिर भर आईं। लाख यत्न करने पर भी आंसू न रूक सके। सलीम समझ गया। उसका हाथ पकड़कर बोला-क्या फीस के लिए रो रहे हो- भले आदमी, मुझसे क्यों न कह दिया- तुम मुझे भी गैर समझते हो। कसम खुदा की, बड़े नालायक आदमी हो तुम। ऐसे आदमी को गोली मार देनी चाहिए दोस्तों से भी यह गैरियत चलो क्लास में, मैं फीस दिए देता हूं। जरा-सी बात के लिए घंटे-भर से रो रहे हो। वह तो कहो मैं आ गया, नहीं तो आज जनाब का नाम ही कट गया होता।.

प्रेमचंद - कर्मभूमि
आज वही वसूली की तारीख है। अधयापकों की मेजों पर रुपयों के ढेर लगे हैं। चारों तरफ खनाखन की आवाजें आ रही हैं। सराफे में भी रुपये की ऐसी झंकार कम सुनाई देती है। हरेक मास्टर तहसील का चपरासी बना बैठा हुआ है। जिस लड़के का नाम पुकारा जाता है, वह अधयापक के सामने आता है, फीस देता है और अपनी जगह पर आ बैठता है। मार्च का महीना है। इसी महीने में अप्रैल, मई और जून की फीस भी वसूल की जा रही है। इम्तहान की फीस भी ली जा रही है। दसवें दर्जे में तो एक-एक लड़के को चालीस रुपये देने पड़ रहे हैं।.

ततततत - पीछा
जानकी गाडी तेजी से दौडने लगी थी। थोडीही देर में जिस गाडी के पिछे के कांच पर खुन से शुन्य निकाली हूई तस्वीर लगी थी वह गाडी उसे दिखाई देने लगी। वह गाडी दिखते ही जानव के शरीर मे और जोश आ गया और उसके गाडी की गती उसने और बढाई। थोडीही देर में वह उस गाडी के नजदीक पहूंच गया। लेकिन यह क्या? उसकी गाडी नजदीक पहूचते ही सामने के गाडी ने अपनी रफ्तार और तेज कर ली और वह गाडी जान के गाडी से और दूर जाने लगी। जान ने भी अपने गाडी की रफ्तार और बढाई। दोनो गाडीकी मानो रेस लगी थी।.

यययययय - यययययय
वह कैसी घड़ी थी जब सब कुछ भुलाकर उसने कृष्णन की वांछा की थी और पूरी तरह से उस वांछा को समर्पित हो गई थी, पर अब वह सब घट चुका था, उसकी हस्ती का अटूट हिस्सा बन चुका था। क्या अब उसे किसी तरह से भुलाया या मिटाया जा सकता है?

मीरा कुमारी - लौटना
एकदम पहले जैसा, कभी मन होता विजय को बता दे, उदारदिल विजय शायद सहज रूप में स्वीकार ले पर फिर मीरा के भीतर की सजग नारी उसे सावधान कर देती है 'तू पुरुष स्वभाव को इतनी अच्छी तरह से जान-बूझकर यह ग़लती कैसे कर सकती है? और बताने से होगा क्या? कृष्णन से कभी फिर मिल पाने की संभावना भी ख़त्म' और उसकी तार्किक बुद्धि उसे कहती है 'जो कुछ भी हुआ बहुत सहज मानवीय था, नारी-पुरुष में एक बहुत सहज आकर्षण जो दोनों की शारीरिक निकटता में पराकाष्ठा पाता है, उसमें ग़लत क्या है ये नीतियाँ तो समाज की बनाई हैं।.

editorial - idian cricket
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने सही कहा कि भारत को पांच-छह वर्षों से जिस खिलाड़ी की तलाश थी वह हार्दिक पंड्या के रूप में इंदौर में मिल गया। वह कपिल देव की तरह ऐसा विस्फोटक ऑल राउंडर है, जिसकी कमी खलती थी लेकिन टीम के कोच रवि शास्त्री के प्रोत्साहन और अपनी मेहनत से पंड्या ने वह स्थान प्राप्त कर लिया। पंड्या को चार नंबर पर भेजने का फैसला भी रवि शास्त्री का ही था और वह सही साबित हुआ।.